भारत की धार्मिक
और सांस्कृतिक परंपराओं में रथ यात्रा का एक विशिष्ट स्थान है, और इस भव्य उत्सव
का एक अनोखा हिस्सा है हेरा पंचमी (Hera Panchami), जो भगवान
जगन्नाथ और माता लक्ष्मी के बीच के पवित्र और भावनात्मक संबंध को दर्शाता है। यह
त्योहार हर साल आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है, जो रथ यात्रा के पांचवें दिन के साथ संयोग करता है। हेरा पंचमी केवल एक
धार्मिक अनुष्ठान नहीं है; यह दांपत्य जीवन के रहस्यों,
प्रेम, क्रोध, और सुलह
की गहरी कथा प्रस्तुत करता है, जो श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक
और मानवीय स्तर पर जोड़ता है। इस रस्म में माता लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ की
अनुपस्थिति से नाराज होकर उन्हें ढूंढने निकलती हैं, जो एक
नाटकीय और शिक्षाप्रद दृश्य के रूप में सामने आती है। इस व्यापक ब्लॉग में हम हेरा
पंचमी के हर पहलू को विस्तार से जानेंगे-इसका ऐतिहासिक मूल,
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व, रहस्यमयी कथा,
पारंपरिक रस्में, तिथि और उत्सव की रूपरेखा,
जगन्नाथ रथ यात्रा के साथ इसका गहरा संबंध, ओडिशा
की सांस्कृतिक विरासत में इसकी भूमिका, आधुनिक युग में इसकी
प्रासंगिकता, और इससे जुड़ी रोचक कहानियां और तथ्य। इस
पवित्र त्योहार को गहराई से कवर करेगा, ताकि आप इसे न केवल
समझ सकें, बल्कि अपने जीवन में इसके मूल्यों को आत्मसात कर
सकें।
हेरा पंचमी
जगन्नाथ पुरी के प्रसिद्ध रथ यात्रा उत्सव का एक अभिन्न अंग है, जो ओडिशा के पुरी
में हर साल भव्यता के साथ मनाया जाता है। यह रस्म भगवान जगन्नाथ और माता लक्ष्मी
के वैवाहिक संबंध को दर्शाती है, जो हिंदू धर्म में दांपत्य
जीवन की मधुरता, चुनौतियों, और संतुलन
को प्रतिबिंबित करती है। यदि आप धार्मिक उत्सवों में रुचि रखते हैं, जगन्नाथ जी के भक्त हैं, या भारतीय संस्कृति की
गहराइयों को जानना चाहते हैं, तो यह लेख आपके लिए एक अनमोल
संसाधन साबित होगा। आइए, इस अनोखी रस्म के रहस्य, महत्व, और सांस्कृतिक विरासत को विस्तार से खोलते व
समझते हैं।
हेरा
पंचमी क्या है?
एक परिचय
हेरा पंचमी (Hera Panchami) हिंदू
पंचांग के आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाने वाला एक विशिष्ट
धार्मिक उत्सव है, जो मुख्य रूप से ओडिशा के पुरी में
जगन्नाथ मंदिर में आयोजित होता है। "हेरा" शब्द का अर्थ
"देखना" या "ढूंढना" होता है, और यह
रस्म माता लक्ष्मी द्वारा भगवान जगन्नाथ को ढूंढने की कथा पर आधारित है। यह रथ यात्रा
के पांचवें दिन मनाया जाता है, जब भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र, और बहन सुभद्रा रथों में सवार होकर
गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। इस दौरान माता लक्ष्मी मंदिर में अकेली रह
जाती हैं, जिससे उनकी नाराजगी बढ़ती है, और वे अपने पति को देखने (हेरा) के लिए निकल पड़ती हैं।
यह रस्म एक
नाटकीय और जीवंत रूप में प्रस्तुत की जाती है, जिसमें माता लक्ष्मी को एक सुसज्जित
पालकी में ले जाया जाता है, और वे गुंडिचा मंदिर पहुंचकर
अपनी भावनाएं व्यक्त करती हैं। इस दौरान मंदिर के पुजारी, श्रद्धालु,
और कलाकार इस दृश्य को जीवंत बनाते हैं, जिसमें
माता लक्ष्मी के क्रोध और सुलह की प्रक्रिया को दर्शाया जाता है। हेरा पंचमी न
केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह वैवाहिक जीवन की
जटिलताओं-प्रेम, ईर्ष्या, और पुनर्मिलन-को
भी परिलक्षित करती है। यह त्योहार हर साल आषाढ़ मास की शुक्ल पंचमी को रथ यात्रा
के पांचवें दिन मनाया जाता है, जो आमतौर पर जून-जुलाई के
महीनों में पड़ता है।
इस उत्सव का
आकर्षण केवल पुरी तक सीमित नहीं है;
यह ओडिशा के अन्य मंदिरों और जगन्नाथ जी के भक्तों के घरों में भी
उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार श्रद्धालुओं को भगवान और उनकी शक्तियों
के मानवीय पहलुओं से जोड़ता है, जो इसे अनूठा बनाता है।
हेरा
पंचमी का ऐतिहासिक और पौराणिक आधार
हेरा पंचमी की
जड़ें प्राचीन हिंदू परंपराओं और जगन्नाथ मंदिर के इतिहास में गहरे तक फैली हुई
हैं। जगन्नाथ पुरी मंदिर की स्थापना 12वीं शताब्दी में गंगा वंश के राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव द्वारा की गई थी,
और रथ यात्रा की परंपरा भी उसी काल से चली आ रही है। इस रस्म का
उल्लेख स्कंद पुराण, नीलाद्री महोदय, और
अन्य वैष्णव ग्रंथों में मिलता है, जहां माता लक्ष्मी की
नाराजगी और उनकी खोज की कथा वर्णित है।
पौराणिक
कथा
कथा के अनुसार, रथ यात्रा के
दौरान भगवान जगन्नाथ अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के साथ गुंडिचा मंदिर जाते हैं,
जो उनकी मौसी का मंदिर माना जाता है। यह यात्रा 9 दिनों तक चलती है, और इस दौरान वे माता लक्ष्मी को
अपने साथ नहीं लेते। माता लक्ष्मी, जो संपत्ति और समृद्धि की
देवी हैं, अपनी इस अनदेखी से नाराज हो जाती हैं। पांचवें दिन,
वे अपने सेवकों-जिन्हें "दासी" कहा जाता है-के साथ एक
सुसज्जित पालकी में सवार होकर गुंडिचा मंदिर की ओर निकल पड़ती हैं।
गुंडिचा मंदिर
पहुंचकर माता लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ से अपनी शिकायत व्यक्त करती हैं और
प्रतीकात्मक रूप से उनके रथ का एक छोटा हिस्सा तोड़ देती हैं, जो "रथ
भंग" के नाम से जाना जाता है। यह क्रिया उनके क्रोध और प्रेम का प्रतीक है।
इसके बाद वे वापस लौटती हैं, और मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना
के साथ उनकी नाराजगी शांत होती है। यह लीला भक्तों को सिखाती है कि रिश्तों में
मतभेद स्वाभाविक हैं, लेकिन सुलह उन्हें मजबूत बनाती है।
ऐतिहासिक
विकास
16वीं
शताब्दी में श्री चैतन्य महाप्रभु ने इस रस्म को और लोकप्रिय बनाया, जिन्होंने वैष्णव भक्ति आंदोलन को बढ़ावा दिया। उनके समय से हेरा पंचमी को
एक नाटकीय और सामुदायिक उत्सव के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई। 18वीं और 19वीं शताब्दी में मराठा शासकों और ब्रिटिश
अधिकारियों ने भी इस उत्सव को देखा और इसके सांस्कृतिक महत्व को स्वीकारा। ब्रिटिश
काल में इसे "नाटकीय प्रदर्शन" के रूप में रिकॉर्ड किया गया, जिसने इसे और प्रसिद्धि दिलाई। आज यह ओडिशा की सांस्कृतिक पहचान का एक
अभिन्न हिस्सा बन चुका है।
हेरा
पंचमी का धार्मिक,
सांस्कृतिक, और सामाजिक महत्व
हेरा पंचमी का
महत्व कई स्तरों पर है,
जो इसे एक बहुआयामी उत्सव बनाता है।
1. धार्मिक महत्व
·
ईश्वरीय
भावनाएं: यह रस्म भक्तों को सिखाती है कि भगवान भी मानवीय भावनाओं—क्रोध, प्रेम, और सुलह-से
जुड़े हैं, जो उन्हें भक्तों के करीब लाती है।
·
वैवाहिक
संतुलन: माता लक्ष्मी का क्रोध दर्शाता है कि रिश्तों में संवाद, सम्मान, और समझ जरूरी है, जो
वैवाहिक जीवन के लिए एक पाठ है।
·
लीला
का हिस्सा: यह रथ यात्रा की लीला को पूरा करता है, जो भगवान की
मानवता और उनकी दिव्यता के बीच संतुलन को दर्शाता है।
·
आध्यात्मिक
शिक्षा: भक्तों को क्षमा, धैर्य, और
पुनर्मिलन का मूल्य सिखाता है, जो आध्यात्मिक विकास में
सहायक है।
2. सांस्कृतिक महत्व
·
ओडिशा
की कला: हेरा पंचमी में ओडिशा की पारंपरिक नृत्य शैलियां जैसे ओडिशा, चाउ नृत्य, और लोक संगीत का प्रदर्शन होता है,
जो इसकी सांस्कृतिक समृद्धि को बढ़ाता है।
·
महिलाओं
की भूमिका: माता लक्ष्मी की नाराजगी और सक्रियता महिलाओं के सशक्तिकरण और उनके
अधिकारों को दर्शाती है, जो समाज में उनकी भूमिका को मजबूत
करती है।
·
लोककला: इस रस्म को पत्थर
की नक्काशी, पेंटिंग, मिट्टी के
खिलौनों, और पारंपरिक वस्त्रों में चित्रित किया जाता है,
जो ओडिशा की कला को जीवित रखता है।
·
पर्यटन: यह ओडिशा का एक
प्रमुख पर्यटक आकर्षण बन गया है, जो वैश्विक स्तर पर इसकी
प्रसिद्धि बढ़ाता है।
3. सामाजिक महत्व
·
परिवारिक
मूल्य: यह त्योहार परिवार में संवाद, प्रेम, समझ, और आपसी सम्मान को बढ़ावा देता है, जो आधुनिक समाज में भी प्रासंगिक है।
·
सामुदायिक
एकता: लाखों श्रद्धालु एक साथ इकट्ठा होते हैं, जो सामाजिक
सद्भाव, सहयोग, और एकता को मजबूत करता
है।
·
आधुनिक
संदेश: तनाव प्रबंधन, भावनात्मक बुद्धिमत्ता, और रिश्तों में संतुलन का प्रतीक, जो आज के
तेज-तर्रार जीवन में उपयोगी है।
हर साल आषाढ़ मास
की शुक्ल पंचमी को मनाया जाने वाला यह त्योहार समय के साथ विकसित हुआ है, और डिजिटल युग में
यह सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहा है, जिससे युवा पीढ़ी इसे
नई दृष्टि से अपनाने लगी है।
हेरा
पंचमी का रहस्य: कथा और उसकी गहराई
हेरा पंचमी का
सबसे आकर्षक पहलू इसका रहस्यमयी और दार्शनिक पक्ष है, जो एक पौराणिक कथा
पर आधारित है। कथा इस प्रकार है:
रथ यात्रा के
दौरान भगवान जगन्नाथ,
बलभद्र, और सुभद्रा अपने रथों में सवार होकर
गुंडिचा मंदिर-जो उनकी मौसी का निवास माना जाता है-की ओर प्रस्थान करते हैं। यह
यात्रा 9 दिनों तक चलती है, और इस
दौरान वे माता लक्ष्मी को अपने साथ नहीं लेते। माता लक्ष्मी, जो जगन्नाथ मंदिर में रहती हैं, इस अनदेखी से नाराज
हो जाती हैं। पांचवें दिन, उनकी नाराजगी चरम पर पहुंचती है,
और वे अपने सेवकों-जिन्हें "दासी" कहा जाता है-के साथ एक
सुसज्जित पालकी में सवार होकर गुंडिचा मंदिर की ओर निकल पड़ती हैं।
गुंडिचा मंदिर
पहुंचकर माता लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ से अपनी शिकायत व्यक्त करती हैं और
प्रतीकात्मक रूप से उनके रथ का एक छोटा हिस्सा तोड़ देती हैं, जिसे "रथ
भंग" कहा जाता है। यह क्रिया उनके क्रोध और प्रेम का प्रतीक है, जो दर्शाता है कि वे अपने पति की अनदेखी को स्वीकार नहीं करतीं। इसके बाद
वे वापस लौटती हैं, और मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना के साथ
उनकी नाराजगी शांत होती है। यह लीला भक्तों को सिखाती है कि रिश्तों में मतभेद
स्वाभाविक हैं, लेकिन सुलह और पुनर्मिलन उन्हें और मजबूत
बनाते हैं।
रहस्य
के पीछे का दर्शन
·
दांपत्य
जीवन: यह कथा पति-पत्नी के बीच ईर्ष्या, प्रेम, और संतुलन को दर्शाती है, जो हर रिश्ते का आधार है।
·
संपत्ति
का प्रतीक: माता लक्ष्मी का क्रोध बताता है कि अनदेखी से समृद्धि और सुख प्रभावित हो
सकता है, जो एक सामाजिक संदेश देता है।
·
मानवीय
ईश्वर: भगवान जगन्नाथ की लीला में मानवीय भावनाएं शामिल हैं, जो भक्तों को उनके करीब लाती हैं और आस्था को मजबूत करती हैं।
·
सांस्कृतिक
संदेश: यह ओडिशा की परंपरा में रिश्तों की गहराई और सामाजिक मूल्यों को दर्शाता
है, जो पीढ़ियों से चला आ रहा है।
हेरा
पंचमी की रस्में और उत्सव: एक जीवंत अनुभव
हेरा पंचमी की
रस्में पुरी जगन्नाथ मंदिर में भव्य और रंगीन रूप से मनाई जाती हैं, जो इसे एक अनोखा
उत्सव बनाती हैं। यह रस्म न केवल धार्मिक है, बल्कि एक
सांस्कृतिक नाटक के रूप में भी प्रस्तुत की जाती है।
मुख्य
रस्में
·
माता
लक्ष्मी का प्रस्थान:
शाम के समय माता लक्ष्मी को एक सुनहरी और फूलों से सजी पालकी में
विराजमान किया जाता है। इस पालकी को मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है,
जहां सैकड़ों श्रद्धालु, पुजारी, और पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ जुलूस शामिल होता है।
·
रथ
भंग: माता लक्ष्मी गुंडिचा मंदिर पहुंचकर भगवान जगन्नाथ के रथ का एक
प्रतीकात्मक हिस्सा तोड़ती हैं, जो उनकी नाराजगी का प्रतीक
है। यह रस्म पुजारी द्वारा नियंत्रित और सुरक्षित तरीके से की जाती है, जिसमें लकड़ी का एक छोटा टुकड़ा तोड़ा जाता है।
·
वापसी
यात्रा: माता लक्ष्मी की वापसी में मंदिर के गलियारों को फूलों और दीपकों से सजाया
जाता है, और मंत्रोच्चार के साथ जुलूस लौटता है। यह दृश्य
भक्तों के लिए भावनात्मक होता है।
·
आरती
और भजन: रात में मंदिर में भव्य आरती और भजन कीर्तन का आयोजन होता है, जिसमें स्थानीय कलाकार और भक्त भाग लेते हैं।
·
प्रसाद
वितरण: माता लक्ष्मी के सम्मान में विशेष प्रसाद—खीचड़ी,
दालमा, और मिठाइयां—वितरित
किया जाता है, जो भक्तों के बीच साझा किया जाता है।
घर
पर कैसे मनाएं
·
मंदिर
जाकर हेरा पंचमी की पूजा में भाग लें या घर में जगन्नाथ जी और लक्ष्मी जी की
मूर्तियों की पूजा करें।
·
पारंपरिक
ओडिया व्यंजन जैसे खीचड़ी,
पिठा, और रसगुल्ला बनाएं और परिवार के साथ
साझा करें।
·
भजन
गाएं और इस दिन व्रत रखें (वैकल्पिक,
पुजारी की सलाह से)।
·
बच्चों
को इस कथा की कहानी सुनाएं,
नाटक के माध्यम से समझाएं, और पारंपरिक
वेशभूषा में उन्हें शामिल करें।
·
घर
में दीपक जलाएं और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद मांगें।
हर साल आषाढ़ मास
की शुक्ल पंचमी को मनाया जाने वाला यह त्योहार अपने स्थानीय रूप में भक्तों के लिए
एक आध्यात्मिक अनुभव होता है। पुरी में लाखों श्रद्धालु इस दृश्य का हिस्सा बनने
के लिए इकट्ठा होते हैं,
और सरकार हर साल सुरक्षा, ट्रैफिक प्रबंधन,
और भीड़ नियंत्रण के लिए विशेष इंतजाम करती है।
जगन्नाथ
रथ यात्रा से हेरा पंचमी का गहरा संबंध
हेरा पंचमी
जगन्नाथ रथ यात्रा का एक अभिन्न और भावनात्मक हिस्सा है। रथ यात्रा में भगवान
जगन्नाथ, बलभद्र, और सुभद्रा हर साल आषाढ़ मास के द्वितीया
तिथि को अपने रथों में सवार होकर गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं, जो 9 दिनों तक चलती है। हेरा पंचमी पांचवें दिन मनाई
जाती है, जो इस यात्रा की लीला को पूरा करती है।
संबंध
का महत्व
·
लीला
का विस्तार:
रथ यात्रा भगवान की यात्रा और उनके भक्तों के साथ मिलन का प्रतीक है,
और हेरा पंचमी माता लक्ष्मी की भावनाओं को जोड़ती है, जो इस लीला को संपूर्ण बनाती है।
·
संतुलन: यह दर्शाता है कि
भगवान की लीला में सभी देवी-देवताओं—जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा, और लक्ष्मी—का महत्व है, जो वैदिक परंपरा का हिस्सा है।
·
भक्तों
का आकर्षण: यह रस्म रथ यात्रा को और रोचक और भावनात्मक बनाती है, जिससे देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती है।
·
आध्यात्मिक
आयाम: यह भक्तों को सिखाता है कि ईश्वर की हर लीला में एक गहरा अर्थ होता है,
जिसे समझने की कोशिश करनी चाहिए।
सांस्कृतिक
विरासत और आधुनिक प्रासंगिकता
हेरा पंचमी ओडिशा
की सांस्कृतिक विरासत का एक गौरवशाली हिस्सा है, जो पीढ़ियों से चला आ रहा है और आधुनिक
युग में भी प्रासंगिक बना हुआ है।
सांस्कृतिक
विरासत
·
लोककला: पत्थर की
मूर्तियां, पेंटिंग, मिट्टी के खिलौने,
और हाथ से बने वस्त्र इस रस्म को दर्शाते हैं, जो ओडिशा की कला को जीवित रखता है।
·
नृत्य
और संगीत: ओडिशा नृत्य, चाउ नृत्य, और
लोक गीत इस उत्सव का अभिन्न हिस्सा हैं, जो सांस्कृतिक
विविधता को बढ़ाते हैं।
·
परंपरा: यह ओडिशा की पहचान
को वैश्विक स्तर पर बढ़ाता है और इसे यूनेस्को की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में
मान्यता दिलाने की दिशा में काम कर रहा है।
·
स्थानीय
प्रभाव: गांवों में यह उत्सव पारंपरिक बाजारों और मेले के रूप में मनाया जाता है,
जो स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है।
आधुनिक
प्रासंगिकता
·
महिलाओं
का सशक्तिकरण:
माता लक्ष्मी की भूमिका महिलाओं के अधिकारों, उनकी
आवाज, और रिश्तों में उनकी समानता को दर्शाती है, जो आधुनिक समाज में महत्वपूर्ण है।
·
डिजिटल
युग: सोशल मीडिया पर #HeraPanchami ट्रेंड कर रहा है,
और युवा इसे वीडियो, मीम्स, और लाइव स्ट्रीमिंग के माध्यम से साझा कर रहे हैं।
·
शिक्षा: स्कूलों और
कॉलेजों में इसकी कहानी बच्चों और युवाओं को सिखाई जा रही है, जो इसे नई पीढ़ी तक पहुंचा रही है।
·
पर्यटन: हर साल 10 लाख से अधिक पर्यटक पुरी आते हैं, और यह ओडिशा के
पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देता है।
·
पर्यावरण
जागरूकता: कुछ संगठन इस अवसर पर पेड़ लगाने और स्वच्छता अभियान चलाते हैं, जो इसे हरा-भरा त्योहार बनाता है।
रोचक
कहानियां,
तथ्य, और वैश्विक प्रभाव
·
ऐतिहासिक
घटना: 1809 में एक ब्रिटिश अधिकारी ने इस रस्म को देखकर इसे "नाटकीय लीला"
कहा और अपनी डायरी में दर्ज किया, जो आज भी संग्रहालय में
सुरक्षित है।
·
अजीबोगरीब
तथ्य: प्राचीन काल में रथ भंग में असली लकड़ी तोड़ने की परंपरा थी, लेकिन सुरक्षा कारणों से इसे प्रतीकात्मक रूप में बदल दिया गया।
·
कहानी: एक लोकप्रिय कथा
के अनुसार, एक भक्त ने सपने में माता लक्ष्मी को देखा,
जिन्होंने उसे हेरा पंचमी की रस्म शुरू करने का संदेश दिया, जिससे यह परंपरा शुरू हुई।
·
वैश्विक
प्रभाव: अमेरिका, यूके, ऑस्ट्रेलिया,
और कनाडा में ओडिया समुदाय इस त्योहार को मनाते हैं, और कुछ मंदिरों में इसे लाइव प्रसारित किया जाता है।
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प्राकृतिक
संयोग: कई बार इस दिन बारिश होती है, जिसे माता लक्ष्मी के
आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है।
निष्कर्ष:
हेरा पंचमी का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक उपहार
हेरा पंचमी हर
साल आषाढ़ मास की शुक्ल पंचमी को मनाया जाने वाला एक पवित्र त्योहार है, जो भगवान जगन्नाथ
और माता लक्ष्मी की अनोखी रस्म का प्रतीक है। इसका रहस्य और महत्व दांपत्य जीवन की
गहराई, प्रेम, क्रोध, और सुलह को दर्शाता है, जो हर रिश्ते के लिए
प्रेरणादायक है। यह ओडिशा की सांस्कृतिक विरासत को जीवंत रखता है और आधुनिक युग
में भी प्रासंगिक बना हुआ है। यदि आप पुरी जा रहे हैं, तो
सुरक्षित यात्रा करें, इस लीला का आनंद लें, और अपने जीवन में इसके संदेश-संतुलन, समझ, और प्रेम-को अपनाएं। इस त्योहार के साथ भगवान जगन्नाथ और माता लक्ष्मी का
आशीर्वाद आपके साथ हो, और यह उत्सव आपको आध्यात्मिक शांति और
सांस्कृतिक गर्व प्रदान करे ।
नोट:- यह जानकारी धार्मिक ग्रंथों, परंपराओं, और स्थानीय स्रोतों पर आधारित है। उत्सव की तिथि और विवरण पंचांग से चेक करें।
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