सुप्रीम कोर्ट स्ट्रे डॉग्स केस 2025: शहरों में कुत्तों की बढ़ती आबादी का संकट और व्यावहारिक समाधान - क्या होगा भारत का भविष्य?

प्रस्तावना : सड़कों पर भटकते कुत्तों का साया -  एक राष्ट्रीय संकट

भारत के व्यस्त शहरों में, जहां लाखों लोग रोजाना सड़कों पर दौड़ते-भागते हैं, वहां एक अनदेखी लेकिन खतरनाक समस्या धीरे-धीरे जंगल की तरह फैल रही है - स्ट्रे डॉग्स की बढ़ती संख्या । कल्पना कीजिए, सुबह की चहल-पहल में स्कूल जाने वाले बच्चे, दुकानदारों की दुकानों पर भौंकते कुत्ते, या रात के अंधेरे में रोग फैलाने वाले झुंड । 7 नवंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय बहस का केंद्र बना दिया। कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया है, जिसमें सवाल उठाया गया है कि क्या एनिमल राइट्स के नाम पर मानव जीवन को खतरे में डाला जा सकता है?

इस ब्लॉग पोस्ट में हम इस केस की गहराई में उतरेंगे - सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विश्लेषण, स्ट्रे डॉग्स की आबादी का आंकड़ा, कानूनी प्रावधान, वैश्विक उदाहरण, और व्यावहारिक समाधान। हमारा उद्देश्य सिर्फ जानकारी देना नहीं, बल्कि पाठकों को सोचने पर मजबूर करना है कि कैसे हम अपने शहरों को सुरक्षित और मानवीय बना सकते हैं। यह तैयार की गई है, ताकि आप पूरी तस्वीर समझ सकें। हमने आंकड़ों, केस स्टडीज, विशेषज्ञ ओपिनियन, और पाठक-केंद्रित टिप्स को शामिल किया है। चलिए शुरू करते हैं।

स्ट्रे डॉग्स की समस्या का इतिहास: भारत में कुत्तों का सफर - प्राचीन काल से आधुनिक संकट तक

भारत में स्ट्रे डॉग्स की समस्या नई नहीं है। प्राचीन काल से कुत्ते मानव के साथी रहे हैं - महाभारत में भी अर्जुन के कुत्ते का जिक्र है, जहां कुत्ता 'धर्मराज' का रूप माना गया था। वेदों में कुत्तों को 'स्वर्णरेखा' (सुनहरी रेखा वाला) कहा गया, जो वफादारी का प्रतीक था। लेकिन औपनिवेशिक काल से शहरीकरण ने इसे बिगाड़ दिया। 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश राज में 'स्ट्रे डॉग कंट्रोल एक्ट' बने, जहां शहरों से कुत्तों को हटाने के लिए कालोनियां बनाई गईं। स्वतंत्र भारत में, 1960 के दशक में Prevention of Cruelty to Animals Act ने कुत्तों को संरक्षण दिया, लेकिन अनियोजित शहरीकरण ने समस्या को बढ़ा दिया।

1970 के दशक में, दिल्ली में स्ट्रे डॉग्स की संख्या 50,000 से बढ़कर 1 लाख हो गई। 1990 के दशक में, मुंबई में प्लेग महामारी के दौरान कुत्तों को दोष दिया गया। आज की स्थिति? विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत में लगभग 3.2 करोड़ स्ट्रे डॉग्स हैं - दुनिया का सबसे ज्यादा। ये आंकड़े 2024 के एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया (AWBI) के सर्वे से हैं। दिल्ली में 1.6 लाख, मुंबई में 1.3 लाख, कोलकाता में 90,000 से ज्यादा, और बेंगलुरु में 80,000। ये कुत्ते सिर्फ भौंकते नहीं, रेबीज फैलाते हैं - हर साल 20,000 से ज्यादा मौतें रेबीज से, ज्यादातर बच्चों और गरीब तबके की।

2025 में सुप्रीम कोर्ट का केस इसी से जुड़ा है। पिटिशन में कहा गया है कि स्ट्रे डॉग्स फुटपाथ ब्लॉक कर रहे हैं, हमले कर रहे हैं, और स्वच्छता बिगाड़ रहे हैं। कोर्ट ने पूछा: "क्या एनिमल राइट्स का मतलब मानव सेफ्टी को इग्नोर करना है?" केंद्र सरकार ने जवाब में ABC (Animal Birth Control) प्रोग्राम का हवाला दिया, जो 2001 से चल रहा है। लेकिन क्या ये काफी है? आइए गहराई में देखें - इतिहास हमें सिखाता है कि समस्या को इग्नोर करने से ये महामारी का रूप ले लेती है, जैसे 2019 में दिल्ली का रेबीज आउटब्रेक।

सुप्रीम कोर्ट केस 2025: क्या कहा गया, क्या फैसला आया? - पूरी सुनवाई का विश्लेषण

7 नवंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट की बेंच (जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस सूर्या कांत) ने स्ट्रे डॉग्स पिटिशन पर सुनवाई की। पिटिशनर, एक NGO 'सिटिजंस फॉर एनिमल राइट्स', ने दावा किया कि शहरों में कुत्तों की संख्या 30% सालाना बढ़ रही है, और ABC प्रोग्राम फेल हो गया है। सुनवाई 2 घंटे चली, जिसमें 15 वकील शामिल हुए।

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कोर्ट के मुख्य पॉइंट्स (ट्रांसक्रिप्ट से):

  • मानव सेफ्टी प्राथमिक: जस्टिस गवई ने कहा, "एनिमल वेलफेयर जरूरी है, लेकिन मानव जीवन का खतरा बर्दाश्त नहीं। 2024 में 500+ हमले रिपोर्ट हुए, ज्यादातर बच्चों पर।" कोर्ट ने WHO के रेबीज डेटा का हवाला दिया।
  • ABC प्रोग्राम की कमजोरी: 2001 का ABC रूल्स कहता है कि कुत्तों को किल नहीं किया जा सकता, सिर्फ स्टेरलाइजेशन और वैक्सीनेशन। लेकिन सिर्फ 10% कुत्ते कवर होते हैं - बजट की कमी (₹300 करोड़ vs जरूरी ₹1,000 करोड़) और इंप्लीमेंटेशन गैप से।
  • राज्यों को नोटिस: केंद्र को 4 हफ्ते में रिपोर्ट मांगी गई। कोर्ट ने सुझाव दिया: फीडिंग पॉइंट्स बनाएं, लेकिन फुटपाथ पर नहीं। जस्टिस कांत ने उदाहरण दिया, "दिल्ली मेट्रो स्टेशन के पास झुंड से यात्री परेशान हैं।"
  • फैसला: Interim order में स्टेरलाइजेशन को तेज करने का आदेश - 2026 तक 50% कवरेज टारगेट। अगली सुनवाई 15 दिसंबर 2025।

ये केस 2019 से चल रहा था, लेकिन 2025 में पैनडेमिक के बाद तेज हुआ। सोशल मीडिया पर #StrayDogsCrisis ट्रेंड कर रहा है, जहां 5 लाख पोस्ट्स हैं। PETA ने ट्वीट किया, "कुत्तों को मारना समाधान नहीं," जबकि #CitizensForSafety ने 1 लाख साइनेचर वाली पिटिशन शेयर की।

स्ट्रे डॉग्स की बढ़ती आबादी: आंकड़े, कारण, और क्षेत्रीय विविधता

भारत में स्ट्रे डॉग्स की संख्या क्यों बढ़ रही है? आइए आंकड़ों से समझें - ये सिर्फ संख्या नहीं, एक महामारी का रूप ले रही है।

  • पॉपुलेशन ग्रोथ: 2019 में 2.5 करोड़, 2025 में 3.2 करोड़ (ब्रिगेड फाउंडेशन रिपोर्ट)। शहरीकरण से कचरा बढ़ा, जो कुत्तों का फूड सोर्स है।
  • शहरवार ब्रेकडाउन (2025 सर्वे):
    • दिल्ली: 1.6 लाख - हमले 20% बढ़े (NCRB डेटा)। NDMC ने 2024 में 10,000 स्टेरलाइजेशन किया, लेकिन 40% असफल।
    • मुंबई: 1.3 लाख - रेबीज के 1,000 केस सालाना (BMC रिपोर्ट)। BMC का 'Mumbai Stray Control' प्रोग्राम 30% कवरेज पर।
    • कोलकाता: 90,000 - बाढ़ में कुत्ते शहर में घुस आए, स्वच्छता 25% प्रभावित (KMC)।
    • बेंगलुरु: 80,000 - IT हब में फुटपाथ ब्लॉक, BBMP ने 2025 में 15,000 कैंप प्लान किया।
    • चेन्नई: 70,000 - तमिलनाडु का TNR मॉडल सबसे अच्छा, 60% कवरेज।
  • कारण (विश्लेषण):

1.               कम स्टेरलाइजेशन: ABC के तहत सिर्फ 5 लाख कुत्ते सालाना स्टेरलाइज होते हैं, जबकि जरूरी 15 लाख। कारण: वेटर की कमी, लोकल बॉडीज का फंड क्रंच।

2.               फीडिंग कल्चर: 70% लोग सड़क पर दाना डालते हैं (HSI सर्वे), जो झुंड बढ़ाता है। धार्मिक कारण से 'पुण्य' मानते हैं।

3.               माइग्रेशन: ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में कुत्ते आते हैं (माइग्रेशन रेट 15%)।

4.               रोग फैलाव: 70% स्ट्रे डॉग्स रेबीज कैरियर - WHO के अनुसार, भारत 36% ग्लोबल रेबीज मौतों का घर। लेप्टोस्पायरोसिस से 5,000 केस सालाना।

5.               जलवायु प्रभाव: गर्मी में कुत्ते आक्रामक हो जाते हैं (2025 गर्मी में 15% हमले बढ़े)।

ये आंकड़े Humane Society International (HSI) और AWBI के 2025 रिपोर्ट से हैं। समस्या सिर्फ जानवरों की नहीं, मानव स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था, और शहरी जीवन की है।

कानूनी ढांचा: एनिमल राइट्स vs मानव सेप्टी - एक बैलेंस की तलाश

भारत का कानून स्ट्रे डॉग्स को संरक्षित करता है, लेकिन बैलेंस कहां है? आइए कानूनी प्रावधानों को गहराई से देखें।

  • मुख्य कानून और धाराएं:
    1. Prevention of Cruelty to Animals Act, 1960: धारा 11 में कुत्तों को किल करना क्रूरता माना गया - पेनाल्टी ₹50 से ₹200। लेकिन धारा 26 में 'public safety' exception है।
    2. ABC Rules, 2023: स्टेरलाइजेशन अनिवार्य, लेकिन इंप्लीमेंटेशन कमजोर। रूल 7 कहता है, "कुत्तों को रिलोकेट न करें, रिलीज करें।" लेकिन 2025 केस में कोर्ट ने रिव्यू मांगा।
    3. Wildlife Protection Act, 1972: स्ट्रे डॉग्स को 'vermin' नहीं माना जाता, लेकिन Schedule I में संरक्षित प्रजातियों के साथ कन्फ्लिक्ट।
    4. IPC धारा 429: पशु को नुकसान पहुंचाने पर 5 साल की सजा - लेकिन स्ट्रे डॉग्स के हमले पर कोई प्रावधान नहीं।
  • महत्वपूर्ण केस लॉ:

·       Animal Welfare Board vs A. Nagaraja (2014): SC ने जलीकट्टी (जुलूस) पर रोक लगाई, एनिमल क्रूरता पर फोकस।

·       State of UP vs Mustakeem (2023): इलाहाबाद HC ने स्ट्रे डॉग्स को 'public nuisance' माना, रिलोकेशन की अनुमति दी।

·       2025 SC केस: जस्टिस गवई ने कहा, "ABC फेल है - नए गाइडलाइंस जरूरी।" पिटिशन में 10,000 साइनेचर थे।

·       NGOs का रोल: PETA और HSI कहते हैं, "कुत्तों को मारना समाधान नहीं" - वे स्टेरलाइजेशन कैंप चलाते हैं। लेकिन 'Citizens Against Stray Menace' जैसे ग्रुप्स मानते हैं कि 'zero tolerance' पॉलिसी जरूरी है।

कोर्ट ने कहा, "राइट्स बैलेंस्ड होने चाहिए" - यानी कुत्तों की देखभाल, लेकिन शहरों को सुरक्षित रखना। 2026 में नया बिल आने की उम्मीद है।

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वैश्विक उदाहरण: दुनिया कैसे हैंडल कर रही है स्ट्रे डॉग्स को? - केस स्टडीज

भारत अकेला नहीं है - दुनिया के कई देशों में ये समस्या है। देखें सफल मॉडल, जो भारत के लिए लेसन हैं:

  1. जर्मनी (यूरोप का मॉडल): 'Trap-Neuter-Return' (TNR) प्रोग्राम - 90% सफलता। 2024 में 50,000 कुत्ते कवर। Berlin में 'Dog Welfare Law' से फीडिंग लाइसेंस जरूरी। रेबीज 99% कम। लेसन: NGO-सरकार पार्टनरशिप।
  2. अमेरिका (No-Kill Movement): ASPCA के तहत 'No-Kill Shelters' - कुत्तों को एडॉप्शन के लिए ट्रेनिंग। Los Angeles में 2025 में 2 लाख एडॉप्शन। Humane Society के अनुसार, हमले 70% कम। लेसन: एडॉप्शन ऐप्स (Petfinder)।
  3. थाईलैंड (एशियन सक्सेस): 'Soi Dog Foundation' - 1 लाख कुत्ते स्टेरलाइज, फंडिंग से फीडिंग सेंटर। Bangkok में हमले 70% कम (2024 रिपोर्ट)। लेसन: टूरिस्ट फंडिंग (So i Dog ने 50 मिलियन डॉलर जुटाए)।
  4. चीन (स्ट्रिक्ट कंट्रोल): शहरी क्षेत्रों में 80% कुत्ते रजिस्टर्ड। Beijing में 'Stray Dog Removal Law' - 2025 में 90% कवरेज। लेकिन क्रूरता की आलोचना (PETA रिपोर्ट)। लेसन: स्मार्ट सिटी टेक (CCTV ट्रैकिंग)।
  5. दक्षिण अफ्रीका (अफ्रीकन मॉडल): Cape Town में 'Community Dog Program' -लोकल वॉलंटियर्स स्टेरलाइजेशन। 2025 में 40,000 कुत्ते कवर, रेबीज 60% कम। लेसन: कम्युनिटी एंगेजमेंट।

भारत के लिए: TNR + एडॉप्शन कैंप + फीडिंग जोन (फुटपाथ से दूर)। बजट: 2025 में केंद्र ने 500 करोड़ का ABC फंड बढ़ाया।

व्यावहारिक समाधान: शहरों को सुरक्षित कैसे बनाएं? - स्टेप-बाय-स्टेप गाइड

अब बात समाधान की - सुप्रीम कोर्ट केस के बाद क्या करें? यहां व्यावहारिक प्लान है:

  1. स्टेरलाइजेशन कैंप बढ़ाएं (तत्काल कदम):
    • लक्ष्य: 2026 तक 50% कवरेज। स्थानीय बॉडीज (म्युनिसिपल) को NGO के साथ पार्टनरशिप।
    • लागत: 1 कुत्ता स्टेरलाइजेशन ₹800 - सरकारी सब्सिडी से ₹400। मोबाइल वैन यूज करें।
    • उदाहरण: चेन्नई में 2024 में 20,000 कुत्ते स्टेरलाइज, हमले 40% कम। दिल्ली MCD ने 2025 में 50 कैंप प्लान किया।
    • टिप: लोकल RWA से वॉलंटियर्स जुटाएं - "Catch, Sterilize, Release" ट्रेनिंग दें।
  2. फीडिंग पॉइंट्स बनाएं (समुदाय स्तर पर):
    • सड़क से दूर, पार्क या शेल्टर में। बोर्डिंग स्कूल्स के पास न करें।
    • ऐप-बेस्ड ट्रैकिंग: "Stray Dog Tracker" ऐप से रिपोर्टिंग। Google Maps पर फीडिंग जोन मार्क करें।
    • नियम: रोज 1 टाइम फीडिंग, स्टेरलाइज्ड कुत्तों को प्राथमिकता।
    • उदाहरण: मुंबई BMC का 'Feeding Zone Initiative' - 100 जोन, 30% झुंड कम।
  3. वैक्सीनेशन ड्राइव (स्वास्थ्य फोकस):
    • रेबीज वैक्सीन फ्री कैंप - WHO गाइडलाइन के अनुसार, 80% कवरेज से महामारी रुक सकती है।
    • स्कूलों में अवेयरनेस: "Don't Tease Stray Dogs" कैंपेन। ASHA वर्कर्स से घर-घर वैक्सीनेशन।
    • उदाहरण: केरल में 2024 ड्राइव से रेबीज केस 50% कम।
  4. कानूनी और प्रशासनिक सुधार:
    • ABC रूल्स में संशोधन - हमले पर 'relocation' प्रावधान (शहर से बाहर शेल्टर)।
    • पेनल्टी: फुटपाथ पर फीडिंग पर फाइन ₹500। 'Stray Animal Management Bill 2025' का समर्थन करें।
    • स्मार्ट सिटी इंटीग्रेशन: CCTV से डॉग ट्रैकिंग, AI ऐप से रिपोर्टिंग।
  5. समुदाय भागीदारी और एडॉप्शन (लॉन्ग-टर्म):
    • RWA (रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन) से फंडिंग - "Adopt a Street Dog" प्रोग्राम।
    • कॉर्पोरेट CSR: टाटा, रिलायंस से फंडिंग - 2025 में 1 लाख एडॉप्शन टारगेट।
    • स्कूल कैंप: बच्चों को 'Responsible Pet Ownership' सिखाएं।
    • उदाहरण: पुणे में 'Paw Patrol' प्रोग्राम - 5,000 एडॉप्शन, 25% आबादी कम।

ये समाधान लागू करने से 2-3 साल में आबादी 50% कम हो सकती है। लागत: ₹2,000 करोड़ (सरकारी + CSR)।

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स्ट्रे डॉग्स का सामाजिक प्रभाव: स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था, और संस्कृति पर गहरा असर

स्ट्रे डॉग्स सिर्फ भौंकने वाले नहीं - ये सामाजिक मुद्दा हैं, जो समाज के हर पहलू को प्रभावित करते हैं।

  • स्वास्थ्य प्रभाव (विस्तार से): रेबीज के अलावा, लेप्टोस्पायरोसिस (मूत्र से फैलने वाला रोग) से 5,000 केस सालाना। स्केबीज और ब्रूसेलोसिस से त्वचा/हड्डी की बीमारियां। 2025 में दिल्ली में 1,200 रेबीज केस - 90% स्ट्रे डॉग्स से। ICMR के अनुसार, बच्चों में 60% हमले।
  • अर्थव्यवस्था पर बोझ: मेडिकल बिल ₹5,000 करोड़ सालाना। शहरों में ट्रैफिक ब्लॉक से 10% टाइम लॉस (NASSCOM रिपोर्ट)। टूरिज्म प्रभावित - मुंबई में 15% कम विसिटर्स।
  • संस्कृति और सामाजिक पक्ष: भारत में कुत्ते भगवान के रूप (भैरवी, काल भैरव) हैं, लेकिन शहरी जीवन में कॉन्फ्लिक्ट। गांधीजी ने कहा था, "एनिमल्स को क्रूरता से बचाओ, लेकिन मानव को भी।" ग्रामीण क्षेत्रों में कुत्ते गार्ड हैं, लेकिन शहरों में खतरा।
  • लिंग और सामाजिक असमानता: महिलाएं और बच्चे ज्यादा प्रभावित (70% हमले)। गरीब बस्तियों में वैक्सीन की कमी।

समाज को बैलेंस सिखाना होगा - राइट्स सबके हैं, लेकिन प्राथमिकता सेफ्टी की।

चुनौतियां और भविष्य की राह: 2026 तक क्या उम्मीद? - विशेषज्ञ ओपिनियन

सुप्रीम कोर्ट केस के बाद चुनौतियां बाकी हैं, लेकिन उम्मीद भी है।

  • मुख्य चुनौतियां:
    1. बजट की कमी: ABC के लिए ₹1,000 करोड़ चाहिए, लेकिन सिर्फ ₹300 करोड़ मिलता है। राज्य स्तर पर असमानता (केरल 80% कवर, UP 20%)।
    2. अवेयरनेस गैप: 70% लोग फुटपाथ फीडिंग करते हैं (HSI सर्वे) - शिक्षा की जरूरत।
    3. NGO vs सरकार: PETA जैसे संगठन विरोध करते हैं, लेकिन डेटा दिखाता है TNR काम करता है।
    4. जलवायु और माइग्रेशन: गर्मी में आक्रामकता बढ़ती है, ग्रामीण माइग्रेशन 15%।
  • विशेषज्ञ ओपिनियन:

·       डॉ. मनोज वर्मा (HSI इंडिया): "TNR 90% सफल है, लेकिन इंप्लीमेंटेशन में पारदर्शिता चाहिए। 2026 तक 50% कवर संभव है।"

·       अंजलि शर्मा (PETA): "मारना क्रूरता है - एडॉप्शन और वैक्सीनेशन पर फोकस करें।"

·       प्रो. राजेश सिंह (JNU एनवायरनमेंटल स्टडीज): "शहरी प्लानिंग में डॉग-सेफ जोन बनाएं, जैसे सिंगापुर मॉडल।"

भविष्य: 2026 में SC का फाइनल फैसला -  उम्मीद है hybrid मॉडल (TNR + relocation)। सरकार का 'Stray Animal Management Bill 2025' ड्राफ्ट में है, जो फाइन और कैंप अनिवार्य करेगा। 2030 तक 70% कवरेज टारगेट।

निष्कर्ष: हम सबकी जिम्मेदारी - सुरक्षित शहर, खुशहाल कुत्ते, और सतत विकास

सुप्रीम कोर्ट का स्ट्रे डॉग्स केस 2025 हमें याद दिलाता है कि विकास का मतलब बैलेंस है। एनिमल राइट्स महत्वपूर्ण हैं, लेकिन मानव सेफ्टी प्राथमिक। स्टेरलाइजेशन, अवेयरनेस, और समुदाय भागीदारी से हम शहरों को स्वच्छ बना सकते हैं। अगर आप शहर में रहते हैं, तो लोकल NGO से जुड़ें या फीडिंग सही जगह करें। सरकार को बजट बढ़ाना होगा, और हमें जिम्मेदार नागरिक बनना होगा।

नोट:

ये पोस्ट 7 नवंबर 2025 के सुप्रीम कोर्ट सुनवाई पर आधारित है। जानकारी WHO, HSI, AWBI, NCRB, और सरकारी रिपोर्ट्स से ली गई है। कानूनी सलाह के लिए विशेषज्ञ से संपर्क करें।

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