छठ पूजा 2025: 25-28 अक्टूबर की तैयारी - पर्यावरण-अनुकूल रीति-रिवाज और 10 प्रैक्टिकल टिप्स
परिचय:
छठ पूजा का पावन संदेश और 2025 की प्रासंगिकता
भारतीय संस्कृति
के विशाल कैनवास पर छठ पूजा एक ऐसा चित्र है जो सूर्य की सुनहरी किरणों से रंगा हुआ
लगता है। यह महापर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि प्रकृति के साथ गहरा
जुड़ाव भी दर्शाता है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला यह त्योहार
मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्सों, छत्तीसगढ़ और दिल्ली-एनसीआर
जैसे क्षेत्रों में हर्षोल्लास से उत्सवित किया जाता है। लेकिन आज के दौर में, जब जलवायु
परिवर्तन की छाया पूरे विश्व पर मंडरा रही है और प्रदूषण की समस्या शहरों को घेर रही
है, तो छठ पूजा को पर्यावरण-अनुकूल ढंग से मनाना एक आवश्यक कदम बन गया है।
2025 में
यह पर्व 25 अक्टूबर से शुरू होकर 28 अक्टूबर तक चलेगा, जो दिवाली की रौनक के ठीक बाद
आता है और जीवन को नई ऊर्जा से भर देता है। चार दिनों का यह व्रत और पूजा का सफर नहाय-खाय
से आरंभ होकर उषा अर्घ्य पर समाप्त होता है, जिसमें हर कदम शुद्धता, समर्पण और सामूहिकता
का संदेश देता है। इस लेख में हम छठ पूजा के पारंपरिक रीति-रिवाजों को विस्तार से समझेंगे,
साथ ही पर्यावरण संरक्षण के नजरिए से आधुनिक टिप्स साझा करेंगे। चाहे आप पहली बार इस
पर्व को मना रहे हों या फिर इसे अधिक हरा-भरा बनाना चाहते हों, यह गाइड आपको हर कदम
पर मार्गदर्शन देगी।
छठ पूजा की
खूबसूरती इसकी सरलता में है। नदियों और तालाबों के किनारे सूर्य को जल अर्पित करना,
मौसमी फलों और ठेकुए का प्रसाद बांटना-ये सब कुछ प्रकृति के दम पर टिका है। लेकिन आधुनिक
जीवनशैली के कारण प्लास्टिक का बढ़ता उपयोग और जल स्रोतों का प्रदूषण इस परंपरा को
चुनौती दे रहा है। इसलिए, 2025 में 'ग्रीन छठ' की अवधारणा को अपनाते हुए, हम 10 व्यावहारिक
टिप्स के साथ पूरी तैयारी की रूपरेखा पेश करेंगे। कल्पना कीजिए, एक ऐसा उत्सव जहां
आस्था की लहरें नदी के स्वच्छ जल से मिलकर एक नई धारा बनाएं। आइए, इस पावन यात्रा की
शुरुआत करें।
छठ पूजा
का इतिहास और महत्व: सूर्य उपासना की प्राचीन जड़ें
छठ पूजा की
नींव वैदिक काल की मिट्टी में जमी हुई है, जहां ऋग्वेद के मंत्रों में सूर्य देव को
जीवन का स्रोत और रोगों का नाशक बताया गया है। पौराणिक आख्यानों में इसकी जड़ें रामायण
से जुड़ी हैं-जब भगवान राम 14 वर्ष के वनवास के बाद मिथिला लौटे, तो माता सीता के स्वास्थ्य
के लिए उन्होंने छठ व्रत का संकल्प लिया। एक अन्य कथा महाभारत से ली गई है, जहां कर्ण,
जो सूर्य पुत्र थे, छठी माईया की कृपा से योद्धा बने। छठी माईया को शष्ठी देवी का रूप
माना जाता है, जो बच्चों की रक्षा और परिवार की सुख-समृद्धि की प्रतीक हैं।
यह त्योहार
प्रकृति पूजा का जीवंत उदाहरण है। सूर्य की किरणें न केवल प्रकाश देती हैं, बल्कि विटामिन
डी का प्राकृतिक स्रोत भी हैं, जो हड्डियों को मजबूत बनाती हैं और ऊर्जा प्रदान करती
हैं। पर्यावरणीय दृष्टि से देखें तो छठ पूजा जल संरक्षण और जैव विविधता को बढ़ावा देती
है। घाटों पर लाखों श्रद्धालुओं का जमावड़ा स्वाभाविक रूप से सफाई अभियान का रूप ले
लेता है, जहां लोग नदी तटों को सजाते-साफ करते हैं। 2025 में, जब वैश्विक स्तर पर जलवायु
संकट चरम पर है, यह पर्व हमें सिखाता है कि धार्मिक परंपराएं पर्यावरण रक्षा का मजबूत
हथियार बन सकती हैं।
सांस्कृतिक
रूप से, छठ पूजा सामाजिक सद्भाव का प्रतीक है। बिहार के गांवों में 'छठी घाटवा' के
लोकगीत गूंजते हैं, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही हैं। शहरी इलाकों में, जैसे दिल्ली
के यमुना घाट या पटना के गंगा तट पर, यह उत्सव आधुनिक रंग ले लेता है-लाइव स्ट्रीमिंग
और वर्चुअल भागीदारी के साथ। युवा पीढ़ी सोशल मीडिया पर छठ की तस्वीरें शेयर कर रही
है, जहां ईको-फ्रेंडली प्रैक्टिसेस की कहानियां वायरल हो रही हैं। इसका महत्व यह भी
है कि यह व्रत निराहार और फलाहार पर आधारित होता है, जो शरीर को डिटॉक्स करने का प्राकृतिक
तरीका है। कुल मिलाकर, छठ पूजा आस्था को प्रकृति के साथ जोड़कर एक संतुलित जीवन का
पाठ पढ़ाती है।
एक छोटी सी
कहानी सुनिए-मेरी एक सहेली, जो मुंबई में रहती है, हर साल छठ पर गांव लौटती है। वह
बताती है कि घाट पर खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते हुए, सारी चिंताएं धुल जाती हैं।
यह त्योहार न केवल धार्मिक है, बल्कि मानसिक शांति का स्रोत भी।
2025 में
छठ पूजा की तिथियां: चार दिनों का पावन सफर
पंचांग के
अनुसार, 2025 में छठ पूजा का आरंभ 25 अक्टूबर (शनिवार) से होगा और समापन 28 अक्टूबर
(मंगलवार) को होगा। यह कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर आधारित है, जो हर साल थोड़ा
बदलती रहती है। चार दिनों का यह क्रम हर श्रद्धालु के लिए एक आध्यात्मिक यात्रा है:
- पहला दिन: नहाय-खाय (25 अक्टूबर,
शनिवार) - व्रत
की शुरुआत पवित्र स्नान से। यह दिन शुद्धिकरण का प्रतीक है।
- दूसरा दिन: खरना (26 अक्टूबर,
रविवार) - फलाहार
और मीठे प्रसाद का दिन, जो ऊर्जा प्रदान करता है।
- तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य (27
अक्टूबर, सोमवार)
- सूर्यास्त की सुनहरी आभा में जल अर्पण।
- चौथा दिन: उषा अर्घ्य (28 अक्टूबर,
मंगलवार) - सूर्योदय
के साथ व्रत का समापन और आशीर्वाद।
पूजा के शुभ
मुहूर्त क्षेत्रीय रूप से भिन्न हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, संध्या अर्घ्य के लिए
सूर्यास्त लगभग 5:30 बजे शाम को, और उषा अर्घ्य के लिए सूर्योदय करीब 6:15 बजे सुबह।
उत्तर भारत के लिए ये समय मानक हैं, लेकिन स्थानीय पंचांग से हमेशा जांच लें। इस वर्ष,
भाई दूज (29 अक्टूबर) के ठीक पहले होने से यह दिवाली की श्रृंखला का भावुक समापन बनेगा।
ये तिथियां
न केवल कैलेंडर पर अंकित हैं, बल्कि जीवन के चक्र का हिस्सा हैं। कल्पना कीजिए, शनिवार
की सुबह नदी किनारे स्नान करते हुए वर्ष की सारी थकान धुल जाना-यह छठ का जादू है।
चार दिनों
की विस्तृत रीति-रिवाज: पारंपरिक तरीके से पूजा
छठ पूजा की
आत्मा इसके चार दिनों के अनुष्ठानों में बसती है। हर दिन एक नया अध्याय खोलता है, जो
धीरे-धीरे चरम पर पहुंचता है। आइए, प्रत्येक दिन को गहराई से समझें, ताकि आप इसे घर
पर आसानी से दोहरा सकें।
दिन
1: नहाय-खाय - शुद्धता की शुरुआत
सूर्योदय से पहले उठें और पवित्र नदी, तालाब या यहां तक कि घर के स्नानघर में स्नान
करें। जल को सिर पर डालते हुए प्रार्थना करें। घर लौटकर लकड़ी के चूल्हे या गैस पर
शुद्ध भोजन तैयार करें-चना दाल, कद्दू की सब्जी (बिना मसाले के) और चावल। यह भोजन छठी
माईया को अर्पित करें, फिर परिवार के साथ ग्रहण करें। कोई बासी या बाहर का भोजन न छुएं।
यह दिन व्रत की नींव रखता है, जहां शरीर और मन दोनों शुद्ध होते हैं। क्षेत्रीय विविधता:
बिहार में कद्दू को विशेष महत्व दिया जाता है, जबकि यूपी में चने की दाल को मीठा बनाया
जाता है।
दिन
2: खरना - समर्पण का मीठा स्वाद
पूरे दिन निराहार रहें, केवल फलाहार लें। शाम को गुड़ से बने चावल-दाल का प्रसाद तैयार
करें। इसे सूर्य देव को अर्पित कर लोटे में रखें और रात भर पूजा करें। अगली सुबह प्रसाद
बांटें। यह दिन मधुरता का प्रतीक है, जो व्रती को ताकत देता है। लोक परंपरा में, खरना
के प्रसाद को 'गुड़िया' कहा जाता है, जो परिवार की एकता को मजबूत करता है।
दिन
3: संध्या अर्घ्य - सूर्यास्त की ज्योति
यह पर्व का हृदय है। ठेकुआ, सुपारी, फल और पान से भरी बांस की टोकरी लेकर घाट पर जाएं।
सूर्यास्त के ठीक समय खड़े होकर जल अर्घ्य दें। महिलाएं लाल साड़ी में, पुरुष धोती-कुर्ते
में सजें। पार्श्व में लोकगीत गूंजें-'उगिहे सूरज देव, अरघ देबो...'। अर्घ्य के बाद
प्रसाद ग्रहण न करें, रात निराहार कटे। पटना के दीघा घाट पर लाखों लोग इकट्ठा होते
हैं, जो एक अद्भुत दृश्य बनाता है।
दिन
4: उषा अर्घ्य - सूर्योदय का आशीष
सूर्योदय से पहले घाट पहुंचें। फिर से अर्घ्य दें, लेकिन इस बार पूर्व दिशा की ओर मुंह
करके। अर्घ्य के बाद व्रत तोड़ें-प्रसाद से ही। परिवार में बांटकर खुशी मनाएं। यह समापन
का क्षण है, जहां सारी मनोकामनाएं पूरी होने का विश्वास होता है।
ये रीति-रिवाज
सदियों पुराने हैं, लेकिन इन्हें अपनाते समय स्थानीय रीति को प्राथमिकता दें। एक वृद्धा
की यादें: "छठ में घाट की मिट्टी आज भी मेरी त्वचा पर लगी रहती है।"
पर्यावरण-अनुकूल
छठ पूजा: क्यों जरूरी और कैसे अपनाएं
आज की दुनिया
में नदियां प्लास्टिक की चपेट में हैं, और त्योहारों का उत्साह कभी-कभी प्रदूषण का
कारण बन जाता है। छठ पूजा, जो मूल रूप से प्रकृति-केंद्रित है, अब ईको-फ्रेंडली चुनौतियों
का सामना कर रही है। प्लास्टिक थैलियां, सिंथेटिक सजावट और रासायनिक प्रसाद जल को दूषित
करते हैं। लेकिन सकारात्मक बात यह है कि परंपरा खुद पर्यावरण-अनुकूल है-बांस की टोकरियां,
मिट्टी के बर्तन और मौसमी फल।
क्यों अपनाएं?
छठ घाटों पर लाखों श्रद्धालु आते हैं; अगर हर कोई जिम्मेदार बने, तो यह सामूहिक सफाई
का बड़ा अभियान बन सकता है। कई शहरों में 'स्वच्छ छठ' पहल चल रही हैं, जहां घाटों को
साफ रखने के लिए स्वयंसेवक तैनात होते हैं। वैश्विक स्तर पर, सतत विकास के लक्ष्यों
के अनुरूप, ऐसे त्योहार पर्यावरण जागरूकता फैला सकते हैं। उदाहरणस्वरूप, गंगा के तट
पर छठ के दौरान मछलियों की संख्या बढ़ जाती है, अगर कचरा न फैलाया जाए।
कैसे अपनाएं?
प्राकृतिक सामग्री चुनें-कपड़े के थैले, पत्तों की सजावट। पूजा से पहले और बाद में
कचरा प्रबंधन करें। सामूहिक रूप से घाट साफ करें। एक छोटा सा कदम: अर्घ्य का जल पौधों
में डालना। यह न केवल धार्मिक कर्तव्य पूरा करता है, बल्कि पृथ्वी की रक्षा भी। कल्पना
कीजिए, एक स्वच्छ घाट जहां सूर्य की किरणें पानी पर नाच रही हों-यह ही ग्रीन छठ का
सपना है।
0 प्रैक्टिकल
टिप्स: ईको-फ्रेंडली छठ पूजा के लिए
यहां 10 सरल
लेकिन प्रभावी टिप्स हैं, जो आपकी पूजा को पर्यावरण के अनुकूल बनाएंगे। हर टिप को स्टेप-बाय-स्टेप
अपनाएं:
- बांस
की टोकरियां अपनाएं:
प्लास्टिक बैग्स को अलविदा कहें। बांस या सुपारी के पत्तों की टोकरियां खरीदें
या घर पर बनाएं। ये न केवल टिकाऊ हैं, बल्कि परंपरा के अनुरूप भी।
- मिट्टी
के दीये जलाएं:
बाजार के चमचमाते प्लास्टिक दीयों से दूर रहें। स्थानीय कुम्हार से मिट्टी के
दीये लें, जो जलने पर मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं। रात में इन्हें घाट पर सजाएं।
- घरेलू
प्रसाद तैयार करें:
ठेकुआ गुड़, गेहूं और घी से बनाएं-कोई पैकेज्ड सामग्री न लें। मौसमी फल जैसे केला,
सेब चुनें, जो लोकल किसानों से मिलें। इससे कार्बन फुटप्रिंट कम होता है।
- घाट
सफाई में योगदान दें:
पूजा से एक दिन पहले स्वयंसेवक बनें। झाड़ू, बोरे लेकर घाट साफ करें। परिवार को
शामिल करें-यह एक मजेदार एक्टिविटी बनेगी।
- जल
का पुन: उपयोग:
अर्घ्य के बाद बचा पानी पौधों या घर के बगीचे में डालें। कभी नदी में फेंकें नहीं,
ताकि जल स्रोत स्वच्छ रहे।
- प्राकृतिक सजावट: सिंथेटिक फूलों की जगह ताजे फूल
या पत्तों से मंडप सजाएं। रंग-बिरंगे कपड़े का उपयोग करें, जो धोने योग्य हों।
- ट्रैफिक और प्रदूषण नियंत्रण: घाट जाने के लिए कारपूलिंग करें
या साइकिल/रिक्शा लें। इससे वाहनों का धुआं कम होगा और आपका योगदान बड़ा।
- डिजिटल आमंत्रण भेजें: पेपर के निमंत्रण कार्ड्स की
जगह व्हाट्सएप या ईमेल से ई-कार्ड शेयर करें। डिजाइन ऐप्स से आसानी से बनाएं।
- कचरा अलग-अलग करें: प्रसाद के अवशेष, प्लास्टिक
(यदि कोई हो) और जैविक कचरे को अलग बिनों में डालें। घाट पर रीसाइक्लिंग पॉइंट्स
का उपयोग करें।
- जागरूकता फैलाएं: सोशल मीडिया पर अपनी ग्रीन छठ
की तस्वीरें शेयर करें। दोस्तों को टिप्स बताएं-एक पोस्ट से सैकड़ों बदलाव आ सकते
हैं।
ये टिप्स
अपनाकर आप न केवल पूजा को शुद्ध रखेंगे, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ
पर्यावरण भी छोड़ेंगे। हर टिप एक छोटा कदम है, जो बड़े परिवर्तन की ओर ले जाता है।
तैयारी
कैसे करें: स्टेप बाय स्टेप गाइड
छठ पूजा की
सफलता अच्छी तैयारी पर टिकी है। कम से कम एक हफ्ता पहले शुरू करें। यहां स्टेप-बाय-स्टेप
गाइड है:
स्टेप
1: सामग्री सूची बनाएं
- ठेकुआ के लिए आटा, गुड़, घी; अर्घ्य के लिए सुपारी, फल, बांस की टोकरी। लोकल मार्केट
से खरीदें।
स्टेप
2: व्रती का चयन -
मुख्यतः महिलाएं व्रत रखती हैं, लेकिन पुरुष भी भाग ले सकते हैं। परिवार की जिम्मेदारियां
बांटें।
स्टेप
3: घाट का चयन और प्लान
- नजदीकी नदी/तालाब चेक करें। ट्रैफिक, पार्किंग और मौसम की जानकारी लें। बैकअप लोकेशन
रखें।
स्टेप
4: लोकगीत और पूजा अभ्यास
- घर पर गीत रिहर्सल करें। यूट्यूब पर पारंपरिक भजन सुनें।
स्टेप
5: ईको किट तैयार
- झाड़ू, कचरा बैग्स, पानी की बोतलें और सनस्क्रीन। बच्चों के लिए स्नैक्स पैक करें।
स्टेप
6: परिवार मीटिंग
- सभी सदस्यों से चर्चा करें। भूमिकाएं तय करें - कौन प्रसाद बनाएगा, कौन सजावट।
स्टेप
7: मौसम और स्वास्थ्य तैयारी
- अक्टूबर में सुबह-शाम ठंड लग सकती है। गर्म कपड़े, दवाई रखें। व्रत के लिए हल्का
भोजन शुरू करें।
स्टेप
8: इमरजेंसी किट -
प्राथमिक चिकित्सा, टॉर्च, मोबाइल चार्जर। घाट पर भीड़ से सावधान रहें।
स्टेप
9: फोटो और यादें कैप्चर
- कैमरा या फोन से पल संजोएं, लेकिन पूजा पर फोकस रखें।
स्टेप
10: पोस्ट-पूजा सफाई
- उत्सव खत्म होने पर घाट साफ करें। यह आपके समर्पण का अंतिम चरण है।
यह गाइड आपको
तनावमुक्त रखेगी। याद रखें, छठ की तैयारी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी पूजा।
सांस्कृतिक
महत्व और आधुनिक अनुकूलन: परंपरा का नया रूप
छठ पूजा बिहारी
संस्कृति का दिल है, लेकिन प्रवासी भारतीयों ने इसे वैश्विक पटल पर पहुंचा दिया। न्यूयॉर्क
के हडसन नदी तट से लेकर लंदन के पार्कों तक छठ घाट उभर रहे हैं। यह त्योहार लैंगिक
समानता का भी प्रतीक है, जहां महिलाएं पूजा का नेतृत्व करती हैं।
आधुनिक अनुकूलन
में वर्चुअल अर्घ्य ऐप्स आ रहे हैं, जहां दूर रहने वाले परिवार लाइव जुड़ सकते हैं।
ईको-प्रसाद डिलीवरी सर्विसेस लोकल किसानों को जोड़ रही हैं। लेकिन मूल भावना वही रहनी
चाहिए-सूर्य और प्रकृति की पूजा। युवा इसे इंस्टाग्राम रील्स से जोड़ रहे हैं, जहां
ग्रीन टिप्स वायरल हो रहे हैं। एक सर्वे बताता है कि 70% युवा ईको-फ्रेंडली छठ को प्राथमिकता
दे रहे हैं। यह परंपरा का नया अवतार है, जो पुरानी जड़ों को मजबूत बनाता है।
सामान्य
प्रश्न (FAQs): छठ पूजा से जुड़े संदेह
Q1: क्या
छठ पूजा सिर्फ महिलाओं के लिए है?
नहीं, पुरुष भी व्रत रख सकते हैं। यह परिवारिक त्योहार है।
Q2: ईको-फ्रेंडली
ठेकुआ कैसे बनाएं?
गेहूं का आटा, गुड़ और देसी घी मिलाकर तवे पर भूनें। कोई रिफाइंड शुगर न डालें।
Q3: यदि
नदी न हो तो क्या करें?
घर के आंगन या बालकनी में सूर्य को अर्घ्य दें। शुद्ध जल का उपयोग करें।
Q4: बच्चों
को कैसे शामिल करें?
उन्हें गीत सिखाएं या सफाई में मदद करवाएं। यह सीख देगा।
Q5:
2025 की तिथियां कन्फर्म कैसे करें?
स्थानीय पंडित या ऑनलाइन पंचांग ऐप से जांचें।
ये FAQs आपकी
शंकाओं को दूर करेंगे।
निष्कर्ष:
छठ की रोशनी में पर्यावरण की ज्योति जलाएं
छठ पूजा
2025 हमें सिखाती है कि आस्था और पर्यावरण एक सिक्के के दो पहलू हैं। 25-28 अक्टूबर
को इस पर्व को मनाते हुए इन टिप्स को अपनाएं, और स्वच्छ नदियों का सपना साकार करें।
सूर्य देव की कृपा आप पर बनी रहे। जय छठी माईया!
नोट: यह लेख सामान्य मार्गदर्शन के लिए
है। पूजा विधि के लिए स्थानीय विद्वानों से परामर्श लें। उत्सव में सावधानी बरतें और
खुशी से मनाएं। शुभ छठ!
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